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उपन्यास >> पिया की गली

पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण

पिया की गली उपन्यास में भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का आबिद जी ने बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है।

भारतीय नारी के जीवन के विभिन्न प्रकार के सुखों एवं दुखों का सजीव वर्णन का आनन्द लेने के लिये पढें

पिया की गली

धरती का श्रृंगार

कहार डोली उठाने आ पहुँचे थे।

शहनाइयों की ध्वनि बराबर रोये जा रही थी।

बिदाई के मार्मिक गीत इधर-उधर हरजा फिजाँ में बिखरे हुए थे।

आँखों में रुके हुए आँसू बाहर निकलने को व्याकुल थे।

कलेजे उदास थे!

अन्दर से बार-बार दुल्हन की दबी-दबी चीखें और उनके साथ लिपटी हुई आहें सुनाई दे रही थीं।

बाहर बाराती खाने से फारिग हो चुके थे। वे दहेज के कमरे में आ-कर एक-एक चीज को उलट-पुलट कर देखते और सर हिला-हिला कर आँखों ही आँखों में एक दूसरे से इशारा करते हुए अपनी-अपनी राय बताते और आँगन में गडे़ टेन्ट में बिखरी कुसिंयों पर बैठ जाते औऱ बातों के खत्म न होने वाले क्रम में अपने अपको बहा देते।

अन्दर दुल्हन की बिदाई की तैयारियाँ हो रही थीं।

पड़ोस की रिश्तेदार स्त्रियाँ औऱ लड़कियाँ सुधा को घेरे बैठी थीं जो घुटनों पर सर झुकाये बराबर रोये जा रही थी।

आँसू थे कि रुकने का नाम ही न ले रहे थे। जाने इतने आँसू कहाँ से आ जमा हुये थे।

जीवन में कभी किसी दिन भी आँसू इस तरह, सैलाब की तरह तो नहीं उमडे़ थे।

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